कर्मचारी पेंशन (EPS-95) समन्वय समिति 68 लाख से अधिक पेंशनभोगियों की अल्प पेंशन बढ़ाने के लिए संघर्षरत रही है। संगठन ने 25,000 से अधिक प्रत्यक्ष सदस्य और लाखों अप्रत्यक्ष पेंशनधारकों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन, राष्ट्रीय राजधानी और देश भर में कई विरोध प्रदर्शन किए। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के बार-बार आदेशों के बावजूद, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा वित्तीय संकट का हवाला देते हुए EPS-95 पेंशन बढ़ाने का नाम नहीं ले रहे हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य शीर्ष नेताओं को कई बार पत्र लिखने के बावजूद, कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया अभी तक नहीं हुई है।
हल ही में EPS-95 समिति के राष्ट्रीय महासचिव प्रकाश पाठकजी ने लाखों वरिष्ठ EPS 95 पेंशनधारको की मौजदा समय की स्तिथि को बया करते हुए कहा EPS 95 पेंशनधारको अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, खासकर कोरोना महामारी के दौरान।
EPS-95 समन्वय समिति के उद्देश्य: EPS-95 समन्वय समिति की स्थापना 2008 में प्रकाश पाठकजी और उनके जैसे वरिष्ठ नागरिकों के एक समूह द्वारा पूरे देश से एक छत्र के नीचे पीड़ित पेंशनरों को लाने और पेंशन वृद्धि के लिए लड़ने के लिए की गई थी जो उनका वास्तविक अधिकार है। प्रख्यात वकील प्रभाकर मरकपवार EPS-95 समन्वय समिति के पहले अध्यक्ष थे, जबकि रतिनाथ मिश्रा कार्यकारी अध्यक्ष थे और प्रकाश पाठकजी राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किये गए थे। अब, प्रकाश येंडे EPS-95 समन्वय समिति के प्रमुख हैं और भीमराव डोंगरे कार्यकारी अध्यक्ष हैं। EPS-95 समन्वय समिति ने 68 लाख से अधिक पेंशनभोगियों के वैध अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक सामाजिक आंदोलन शुरू किया है, जिन्हें अपनी अल्प पेंशन में जीवनयापन करना मुश्किल हो रहा है, जिसकी गणना पुराने नियमों के अनुसार की जाती है।
EPS-95 पेंशनधारक अपने बेटे या बेटियों की मदद से जीवनयापन करते थे। हालांकि, कोरोनोवायरस महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने उनकी नौकरियां छीन लीं और उनकी आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और अब वे खुद भी जीवित रहना मुश्किल समझ रहे हैं। ऐसे में पेंशनधारकों के बच्चों को पेंशनधारकों का ख्याल रखना मुश्किल हो रहा है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमनजी ने घातक वायरस से प्रभावित सभी क्षेत्रों के लिए पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन EPS-95 पेंशनधारको को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। EPS-95 पेंशनधारकोकी हालत वाकई चिंताजनक है।
EPS-95 समन्वय समितिकी मुख्य मांगें: सरकार महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी समिति की रिपोर्ट पर कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 में संशोधन करे। स्वामीनाथन आयोग की तर्ज पर संसद द्वारा गठित इस समिति ने सभी की पेंशन में बढ़ोतरी की सिफारिश की है। इन 68 लाख सेवानिवृत्त कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तरह महंगाई भत्ते (DA) के प्रावधान कर्मचारी पेंशन योजना में दे। EPS-95 समन्वय समिति चाहती हैं कि सरकार उन सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों की प्रतिमाह 15,000 रुपये की सीलिंग को हटा दे, जिनकी आय सेवा में रहते समय अधिक थी। पहले के समय में वेतन बहुत कम थे। और अब पेंशन की गणना भी मौजूदा समय को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। कम से कम सरकार द्वारा महंगाई भत्ते के साथ-साथ सभी को 9,000 रुपये पेंशन देना चाहिए। EPS-95 पेंशनधारकों को केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना (CGHS ) के अंतर्गत मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान की जानी चाहिए।
EPS-95 समन्वय समितिने आंदोलन की शुरुआत में, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरीजी से मिले, जो उस समय भाजपा अध्यक्ष थे। उस समय काफी EPS-95 पेंशनधारकों को पेंशन के रूप में केवल 400 रुपये मिलते थे, क्योंकि वेतन बहुत कम था। गडकरीजी उस समय तत्कालीन श्रम मंत्री बंधु दत्तात्रे को पत्र लिखकर EPS-95 पेंशनधारकोकि काफी मदद की। उसके बाद पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी मिले जिन्होंने EPS-95 समन्वय समिति को आश्वासन दिया। इस मुद्दे को जावड़ेकर ने राज्यसभा में भी उठाया था, जिसके बाद 2012 में कोशियारी समिति का गठन किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने पेंशन को 400 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले, गडकरी और जावड़ेकर दोनों ने आश्वासन दिया था कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो EPS-95 पेंशनधारकोंकी पेंशन को 90 दिनों के भीतर बढ़ाया जायेगा।
EPS-95 पेंशनधारकों के हक़ में पहला आदेश केरल उच्च न्यायलय द्वारा दिया गया था, जिसने पेंशन राशि की गणना करने के लिए सीलिंग को हटाने का फैसला पेंशनरों के पक्ष में सुनाया था। पहले सीलिंग 5000 रुपये थी जो बाद में बढ़ाकर 6500 रुपये और 2014 में 15000 रुपये कर दी गई है। इसका मतलब है कि 15000 रुपये वेतन वाले किसी भी कर्मचारी को समान राशि के बराबर पेंशन मिलेगी। पूर्व कर्मचारियों की पेंशन राशि में अंतर की गणना करने के लिए सरकार को केरल उच्च न्यायलय द्वारा निर्देश दिया गया था। साथ ही पेंशन भुगतान के समय महंगाई भत्ता प्रदान करने के लिए मापदंड भी तय किए। बाद में इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। उसके कुछ दिनों में, EPFO ने शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद उच्चतम पेंशन प्रदान करना शुरू किया। हालाँकि, EPFO ने तब वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत में एक समीक्षा याचिका दायर कर दी और यह मामला अभी लंबित है। EPFO ने 31 मई, 2017 को एक परिपत्र जारी किया जिसके माध्यम से छूट प्राप्त और गैरछूट प्राप्त स्थापनाओके कर्मचारियों के बीच भेदभाव किया।
EPFO सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद, उच्च स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया था इस समिति रिपोर्ट 2016 में सौंपी गई थी, लेकिन उसपर भी कोई सरकार द्वारा कोई कार्यवाही की नहीं गई। अब 31 सांसदों का एक नया पैनल गठित किया गया है इसकी रिपोर्ट संसद को सौंपना बाकी है। EPFO ने उच्चतम पेंशन देने के लिए लगभग 5 लाख रुपये अंतर की राशि लि, लेकिन पिछले साल 19 मई 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करने के बाद इसे वापस कर दिया गया था। सरकार किसी न किसी बहाने इसके तहत देरी कर रही है। और यह बूढ़े और असहाय वरिष्ठ नागरिकों को उनके जीवन के अंतिम छोर पर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। जबकि कई लोगों का निधन हो चुका है, शेष लोग न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
EPS-95 समन्वय समिति अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी से अनुरोध करेगी कि वे सभी पेंशनभोगियों को ईपीएफओ के पास जो अनक्लेम रु 55,000 करोड़ जमा राशि है उसमे से कुछ राशि निकाल कर देने का प्रावधान करे। साथ ही CGHS के तहत स्वास्थ सुविधा भी प्रदान करे। इसके लिए सभी सांसदों से संपर्क करके उनसे कोशियारी समिति की रिपोर्ट को लागू करने की मांग का समर्थन करने और CGHS सेवाएं प्रदान करने के साथ ईपीएफ अधिनियम में संशोधन करने का भी अनुरोध किया जा रहा हैं।
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